hindisamay head


अ+ अ-

कविता संग्रह

अलंकार-दर्पण

धरीक्षण मिश्र

अनुक्रम 28 प्रतिषेध अलंकार पीछे     आगे

 
लक्षण (वीर) :-
जवन काम करि केहू मनई भइल होय पहिले विख्याoत।
ओके तुच्छर बूझि के ओके साथे जहाँ कहात।
ए दूनूँ निषेध के केवल एक प्रयोजन जहाँ लखात।
कि सबको से बढि़ के केवल अपना के बतलावल जात।
या
जौन काम करि के प्रतिद्वन्द्वी भइल होय जग में विख्याnत।
ओसे ज्याकदे कठिन काम के चर्चा जहाँ चलावत जात।
या जेतना वीरन के कइले हो प्रतिद्वन्द्वीज नास परास्तg।
ओ वीरन का अइसन अपना के ना जहाँ बतावल जात।
अइसन अभिमानी बोली में जहवाँ रहे निषेध लखात।
ऊ निषेध प्रतिषेध नाम का अलंकार में हवे गनात॥
 
उदाहरण (सार) :-
हम ना ऊ डाकू जे बड़का ठीकेदार कहावेला।
बड़हन सोर्स लगा के भारी भारी ठीका पावेला।
रद्दी आ सस्ताग सामान लगा निरमान देखावेला।
अधिकांश रुपया बचा बचा अपना के धनिक बनावेला।
हम ना ऊ डाकू जे भारी अधिकारी बनि आवेला।
रिशवत ले के भारी से भी भारी केस पचावेला।
अपना से छोटा अधिकारी लोगन के हाथ लगावेला।
रोके बदे पदोन्निति या बरखासी बदे धिरावेला।
जे तनिको उदार होला से जातिबाद अपनावेला।
जोहि जोहि के जाति आपने जगह जगह बइठावेला।
हम ना ऊ डाकू जे जग में नेता नाम धरावेला।
एमेले एमपी बनि लाखन रुपया निज दाम लगावेला।
आ अपना के बेचेला जब लाखन रुपया पावेला।
बार-बार दल बदलू बनि के जब जब दल से फूटेला।
तब तब मनमानी रुपया निज नवका दल से लूटेला।
हम ना ऊ डाकू जे चोरन समेत राति में जागेला।
अवसर पाके लूट मचा के जल्दीर जल्दीा भागेला।
हम बेटहा डाकू हईं कई सौ के जब गोल बनाईले।
आ एगो निश्चित दिन बदि के बेटिहा के लूटे जाईले।
डेरा गिराइ के लूटीले दुइ तिन दिन साज सजा करके।
हम चुपके से ना लूटीले लूटीले ढोल बजा करके।
लेकिन थाना पुलीस हमरा पँजरा ना कबहूँ आवेला।
बेटिहा ना रपट लिखावेला हाकिम ना केस चलावेला।
ई ना हवे बृटिश शासन जे अस्त्रन अहिंसा से डरि जाय।
मुँह लुकवा के मध्यन राति में भारत से जे चले पराय।
इ ना सात सौ देशी राजा जेकर राज पाट अधिकार।
छिना गइल पल भर में सगरे किंतु उठावल ना हथियार।
ई ना उच्चप जाति भारत के जे के आरक्षण के दीवार।
का भीतर बा घेरि के रखले आपन ई भारत सरकार।
अल्प संख्यरको के सुबिधा ना पा के दिन काटत चुपचाप।
ना जाने कब तक ले भोगी उच्चन जाति अइसन संताप।
ई ना कवनो आन्दोेलन बा हिन्दूज महासभाई।
जे के पूरा बल प्रयोग करके सरकार दबाई।
ई हवे विदेसी घुम पैठी जे बाटे हरदम जाती।
हरत हवे कश्मीघरी जन के घर धन खेती बारी।
चुप हो के दर्शक बनि के देखत सरकार तमाशा।
बीतल बर्ष पचास त आगे कवन करी के आशा।
हम ना हईं बाढ़ संकट जे फसिल कृषक के देत डुबाय।
तब सरकार बान्ह कटवा के पानी देत दूर बहवाय।
हम ना सूखा के संकट जे जगह-जगह नलकूप चलाय।
ओही से पानी पहुँचा के फसिल समूचा लेत बचाय।
हम ना पैरिला माछी जे सब करे बालि के दूध आहार।
गमकसीन भरि के मसीन में माछी मारे तब सरकार।
हम निलगाय हईं जे खेतन के पौधा सब निल करि देत।
घर के पास राति में आके कोहड़ा लउकी तक चरि लेत।
जस नेता चोरन के रक्षक तस हमार रक्षक सरकार।
हर गाँवन में एकर संख्यास होई शीघ्र हजार हजार।
* * * *
ऊ नाहीं कालिज कबे कालिज कहाई जेमें
छात्र लोग एगो जो युनियन बनावे ना।
ऊ नाहीं यूनियन कहाई जौन यूनियन
साल में दु चारि गो बवाल जो उठावे ना।
ऊ ना बवाल कहल जाई जो बवाल बीच
पुलिसो पर छात्र लोग ईंटा चलावे ना।
ऊ ना ईंटा चलल ईंटा चलल कहाई जो
लाठी से पुलिस छात्र लोग के भगावे ना॥
ई ना हवे जड़इया जे जाई कुनैन कुछ खइला से।
ई ना हवे गरीबी जे मिट जाई द्रव्यै कमइला से।
ई ना पाप हवे जे छूटी जा के तीर्थ नहइला से।
ई ना हवे लाज भय जे सब छूटी नेता भइला से।
ई ना वोट के हऽ अकाल जे मिटी दान पुनि कइला से।
ई न कूप मण्डूऽकपना जे जाय दल बदल कइसा से।
ई न जाड़ जे भागी आगे रितु बसंत परि गइला से।
ई हऽ रोग बुढ़ापा जे छूटे केवल मरि गइला से।
ई ना टीचर हवे दबी जे छात्रन का छरियइला से।
ई ना हऽ सरकार गिरी जे दल बदली का भइला से।
ई ना नकल हवे कि होई खतम कड़ाई कइला से।
ई ना हवे पढ़ाई नवकी कि युनियन बनि गइला से।
केहु ना करी जबाब तलब कक्षा से भागि परइला से।
ई ना हवे घोटाला कि पचि जाई समिति गढ़इला से।
आ जाँचे खातिर ओकरा के पूरा अधिकार दियइला से।
ई ना मुँहफट जोसू जे चुप होई खूब पिटइला से।
ई ना फसिल हवे जे नसी बानर निलगाइ पोसइला से।
ई हऽ रोग बुढ़ापा जे छूटी केवल मरि गइला से।
सुरती खाये के आदत भी ये ही टक्करर के लोग हवे।
मरिये गइला पर मानुख का ओसे हो सकत वियोग हवे।
 


>>पीछे>> >>आगे>>